The smart Trick of अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ That Nobody is Discussing

ऐड बना सकते हो और उसे अपने क्लास पर सुना सकते हुए अपनी कॉपी पर लिख सकते हो

ये आदमी अब ज्ञान की तलाश में है। लेकिन एक बात इसने भी अभी पकड़ रखी है, क्या? कि ये कोई है और इसे कुछ चाहिए। राजसिक आदमी को भी कुछ चाहिए था, उसने कहा, “संसार में मिलेगा।” सात्विक आदमी को भी कुछ चाहिए था, उसने कहा, “भीतर मिलेगा, ज्ञान में मिलेगा।”

और जबड़ा टूट जाएगा तब कहोगे, “हाय! हाय! इससे ज़्यादा अच्छा तो ये था कि शनिवार की रात दारु ही पी लेते और चिकन ही खा लेते।”

यह पाठ हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी धनराज पिल्लै का पैंतीस

दुनियादारी की कोई चीज़ चाहिए?” तो कहेगा, “नहीं, सोने दो बस। हम जैसे हैं, ठीक हैं। कहाँ है हमारा वो फटा-पुराना गद्दा और मैली चादर? लाओ उसी पर सो जाएँ।”

जाने वाली जूनियर राष्ट्रीय हॉकी खेलने का अवसर मिला। उस समय धनराज सोलह वर्ष के

ये प्रार्थना का असर होता है। लेकिन आप अगर अपनी इतनी सी भी ताक़त का पूरी तरीक़े से उपयुक्त नहीं करेंगे, लगाएँगे नहीं, डर के बैठे रहेंगे, 'मैं क्या करूँ, दुनिया बहुत बड़ी है, मुझे मसल देगी। हाय! मेरा क्या होगा?

ठीक है, उसने तुम्हें बहुत परेशान किया। एक बार को तुम जंगल भाग गए, पर तुम हो कौन? जो परेशान होने को बहुत more info इच्छुक है। तो अब तुम कुछ तो वहाँ ख़ुराफ़ात करोगे न। हिरण को पछिया लोगे, पेड़ को खोदोगे, कोई खरगोश होगा उस पर कूदोगे। वो सटक लेगा और तुम गिरोगे, भाड़!

किसी भी बात पर उसको चोट लग जाती है। किसी ने उसको देख लिया, उसको चोट लग जाएगी, ‘मुझे ही देखा', और उससे ज़्यादा चोट तब लग जाएगी जब कोई उसे ना देखे, ‘कोई हमें देखता ही नहीं, हमें चोट लग गई'। ये इतने घायल हैं, किसी और की क्या रक्षा करेंगे?

तामसिक अहंकार वो जिसे छटपटाहट अनुभव होनी बहुत कम हो गई है। कैसे कम हो गई है? वैसे कम हो गई है जैसे एक बेहोश आदमी को छटपटाहट नहीं महसूस होती। जैसे एक आदमी जिसे दर्द बहुत हो रहा हो और उसे तुम नींद का इंजेक्शन दे देते हो, उसकी छटपटाहट कम हो जाती है, तमसा ऐसी ही है। बेहोशी के काले अँधेरे को कहते हैं 'तमसा'। चेतनाहीनता के तिमिर का नाम है 'तमसा'।

आचार्य: उनमें से कई जब बिलकुल विक्षिप्त हो जाते हैं और अपने ही बाल नोच लेते हैं, तो तुम्हारे आचार्य जी के पास भी आते हैं। ऍम टी ऍम (मीट द मास्टर) जानते हो न? ऐसे कइयों का हो चुका है। बहुत बड़े-बड़े लोग। जैसे फिर पंख नोचा मुर्गा हो। उसका मुँह सोचो, उसकी हालत सोचो। उस हालत में आकर बैठ जाते हैं, ‘बर्बाद हो गए'। वो बर्बाद हुए तो हुए, दिक़्क़त ये है कि उस प्रक्रिया में, अपनी बर्बादी की प्रक्रिया में न जाने उन्होंने कितने और लोगों को बर्बाद किया।

हॉकी खेलना चाहते थे परन्तु उनके पास हॉकी स्टिक खरीदने के पैसे नहीं थे। अपने

सदस्यों के बीच से गेंद निकाल कर ले जाते थे। वह हॉकी खेलने में माहिर थे। उनके

आसमान तक पहुँचने का सफर तय किया है। एक अभावग्रस्त बचपन जीने वाला यह व्यक्ति आज

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